कलियुग का प्रेम
निश्छल निर्मल आदिकालीन प्रेम का हो रहा है रूपांतरण,
पहले जैसा अब नहीं रह गया है वातावरण।
भौतिकवादी हो गया है इसका आवरण,
भाव और भावुकता से परे होता जा रहा है आधुनिक मधुर मिलन।
स्पर्श स्पंदन की हो चली है अधिकता,
निर्मम नए संबंधों में नहीं रह गयी पहले जैसी निःस्वार्थ प्रगाढ़ता।
प्रेम में संलिप्त वयस्कों के तौर तरीके हो गए हैं भिन्न,
ताक पर मूल्यों को रखकर जो करतें हैं संस्कृति को छिन्न भिन्न।
जाने क्या होगा
इस कलयुगी प्रेम का हश्र,
सुअवसर पर सही मार्गदर्शन ही कर सकती है इसे बेअसर।
चेतन जतन निश्चित ही लाएगा परिवर्तन,
आवश्यक है इसके लिए एक सुनियोजित जागरण।
जो करे अद्वितीय राधा- कृष्ण मिलन जैसे प्रेम का संबोधन।
प्रेरित होगी इससे अवश्य आने वाली पीढ़ी,
और जागृत होगी उनकी मनःस्थिति।
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