अधर मे अधूरे कई प्रश्नवाचक वाक्य,
अजब सी असमंजस, अजीबोगरीब से कई बिन मांगे राय।
अनसुलझी सी बेमानी सी कई बातें,
सुलझने की धुन में जुटी सब हसरतें।
न जानें अंतर्मन की जद्दोजहद कब होगी बंद,
कब होगा अंदरूनी सुनामी का अंत?
जैसा साथी बनता है रथ के लिए सारथी,
वैसे ही इस मन को आवश्यकता है एक विश्यसनीय साथी की।
पहेली सी इस जीवन के दोराहे पर विस्मित हूँ,
बन के मूकदर्शक हर कदम पर आश्चर्यचकित हूँ।
सही और गलत फैसलों के बीच डगमगातें हैं कदम,
यक़ीनन जरूरत होती है बुलंद हौसलों की हरदम।
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