भले ही हैं दोनों अपूर्व और असाधारण,
पर अतिशयोक्ति न होगा यह कहना की इस जीवन की शैली के कारण प्रतीत होतें हैं दोनों एक सामान।|
यद्यपि है एक निर्जीव और दूसरा सजीव,
परन्तु कई बार अपनी मानवीय मूल्यों को भूलकर इंसान बन जाता है एक विचित्र जीव।
जिसकी सांसें तो चलती हैं पर जस्बात कहीं खो चुके होतें हैं,
जिसका अस्तित्व तो पता चलता है, पर वह यक़ीनन ही बेमाना सा बन पड़ा होता है।|
आजीब सी भागम भाग की जिन्दगी,
गजब सी शहरी चकाचौंध की रवानगी|
यह सब ही मिलकर तो परिवर्तित कर देतें हैं, एक इंसान को सामान में,
जो जीता तो है पर बिलकुल मशीन सा, फंसा हुआ विकृत जीवन मायाजाल में।|
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