मैं तो एक छोटी सी गुड़िया थी बस अपनी डैडी की
थोड़ी सी शरारतें थोड़ा सा अल्हड़पन थोड़ी सी पढाई
बस इतनी मे सिमटी थी मेरी और मेरे भाई बहनो की अलौकिक जिंदगी
सोचा नहीं था की अचानक से इसमें असीमित बदलाव आ जायेगा
पर वो कहतें हैं न इंसान का सोचा अल्लाह का सोचा हमेशा एक नहीं होता
बिलकुल सही कहतें हैं मैं एक मेधावी छात्रा थी पर पिताजी पर मेरी एक और छोटी बहन और भाई की जिम्मेदारी थी
समाज के प्रति भी वो जिम्मेदार थे तो उन्होने सोलह साल की उम्र मैं मेरी नयी नियति तय कर दी मेरे हाथ पीले करके
पर बड़ों के आशीर्वाद से मेरी पढाई जारी रही
हाँ लक्ष्य तक पहुँचने के लिए परिश्रम निरंतर तो करना पड़ा बीच मे मातृत्त्व और गृहस्थ आश्रम की सीढ़ी भी
पर दृढ निश्चय लगन और बड़ों के सानिध्य से सब सुनिश्चित ढंग से निबट गया मेरी डिग्रीयां भी मेरी नौकरी भी और मेरे पारिवारिक दायित्व भी
कुछ अच्छा भी हुआ कुछ अनिश्चित चीजें भी हुई पर अंत भला तो सब भला
एक अच्छे शैक्षणिक संस्थान मे काम करने का मौका भी मिला, कुछ बच्चों को घर से शिक्षित करने का दायित्व भी
और अब काफी अरसे बाद मन मे दबी हुई एक अंतर्मन की महत्वकांछा भी सच साबित होने जा रही है जिसके लिए मैं मेरे सभी परिवारजनों को धन्यवाद देना चाहती हूँ और उन सभी लोगों का जिन्होंने मेरा निरंतर मार्गदर्शन किया
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